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रोहतक20 घंटे पहले
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- कहानी 2 टीचर की जो रिटायरमेंट के बाद भी मकसद से नहीं हुए रिटायर
ज्ञान का उजियारा फैलाने का दायित्व संभालते ही शिक्षक का जीवन शिक्षा को समर्पित हो जाता है। समर्पण का ये भाव उन्हें पूज्य बनाता है। इनमें से ही ऐसे हैं जिनके लिए उम्र कभी बाधा नहीं बनीं। शिक्षण के सफर में ये किसी पद से सेवानिवृत्त तो ज़रुर हुए, लेकिन कर्म की प्रधानता को इन्होंने कभी नहीं छोड़ा। शिक्षक दिवस पर हम आपकाे जिले के 2 ऐसे शिक्षकों से रूबरू करा रहे हैं जो रिटारमेंट के बाद भी शिक्षण के असल मकसद से रिटार नहीं हुए हैं।
डॉ. बलजीत सिंह; फन के ये शिल्पकार, अब भी कॉलेज जाकर निखार रहे बेटियों का हुनर
श हर के आईसी कॉलेज कैंपस निवासी निवासी 64 वर्षीय डॉ. बलजीत सिंह घनघस रिटायर्ड कॉलेज प्रिंसिपल हैं। 2015 में जुलाना के सरकारी कॉलेज से रिटायर हुए थे। फाइन आर्ट इनका विषय रहा है। अध्यापन में करीब 3 दशक बिताने के बाद रिटायरमेंट में भी डॉ. बलजीत सिंह फिर शिक्षण से ही जुड़े हैं। रोहतक के राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय में निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं। छात्राओं के कला हुनर को निखारने के लिए अपने हुनर का अनुभव व पेंशन भी उनके नाम करते हैं। बेटियों के लिए अपनी पेंशन से ही ड्राइंग शीट, कैनवास, रंगों और अन्य सामान का खर्च भी उठाते हैं।
कॉलेज आने वाली आर्थिक तौर पर कमजोर कई छात्राओं की प्रतिमाह फीस का खर्च ये अपनी पेंशन से उठाते हैं। डॉ. बलजीत सिंह कहते हैं कि आज भी कई ऐसे मामले आते हैं जिनमें होनहार बेटियों को उनके परिजन कॉलेज नहीं भेजना चाहते। खेल में राष्ट्रीय प्रतियाेगियातों में दूसरे प्रदेशों में भेजने पर झिझक महसूस करते हैं। डॉ. बलजीत सिंह इन परिवारों को समझाने में कॉलेज की ओर से अगुवाई करते हैं। बेटियों के हुनर को नई पहचान मिले इसके लिए वो अपने स्तर पर जुलाना और आईसी कॉलेज में इंटरनेशनल फोटोग्राफी एग्जीबिशन करवा चुके हैं।
डॉ. केएस बेनीवाल; शतरंज की चालों से बेटियों को सुझा रहे सफल जिंदगी की राह
डॉ. केएस बेनीवाल मूल रूप से महम के खेड़ी गांव के रहने वाले हैं। पॉलीटिक्स पॉलीटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. केएस बेनीवाल रिटायरमेंट के बाद ‘जीअो बेटी’ नाम से एक ट्रस्ट चलाते हैं। ट्रस्ट बेटियों के लिए शतरंज कॉम्पीटिशन का आयोजन कराता है। बेटियों को शतरंज में महारत हासिल करने की निशुल्क ट्रेनिंग भी देता है। शतरंज के एक अच्छे खिलाड़ी रहे डॉ. बेनीवाल खुद उन्हें ट्रेनिंग देते हैं। बकौल डॉ. केएस बेनीवाल शतरंज एक माइंड डेवलपमेंट टेक्नीक का गेम है। बेटियों को लेकर एक ही चीज की कमी है वो भी हमारी ओर से ही।
बेटियों को उनकी जिंदगी से जुड़े फैसले लेने का हक उन्हें ही देना चाहिए। मेरा मानना है शतरंज वो खेल है जो बेटियों को भविष्य वह फैसले लेने में सक्षम बनाता है जो उनकी जिंदगी से जुड़े होंगे। डॉ. केएस बेनीवाल की दो बेटियां हैं। बेटी अनुराधा बेनीवाल इंटरनेशनल लेवल की चेस चैंपियन हैं। तीन साल पहले अनुराधा ने ही अपने पिता के साथ गांव में ट्रस्ट की ओर से लड़कियों को शतरंज की ट्रेनिंग शुरू की थी। 40 का सलेक्शन विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए हुआ। 6 राष्ट्रीय लेवल तक पहुंच चुकी हैं। गांव में हर साल बेटियों के लिए प्रतियोगिता करा उन्हें सम्मानित करते हैं।
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