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- The Holistic Development Of Children Can Take Place In School Itself, So Schools Should Be Opened In Cities With Low Infection Rate.
नई दिल्ली10 घंटे पहले
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- सीरो सर्वे में 55 फीसदी बच्चों में मिली एंटीबॉडी नहीं कर सकते वैक्सीन का इंतजार
छात्रों के अभिभावकों को विश्वास में लेना चाहिए, क्योंकि बच्चों का समग्र विकास स्कूल में ही हो सकता है। स्कूल में पढ़ाई के दौरान बच्चों का टीचर्स और दोस्तों से संवाद होता है। इससे उनका सामाजिक एवं नैतिक विकास होता है। यह बात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहीं। उन्होंने कहा कि सीरो सर्वे में 55 फीसदी बच्चों में एंटीबॉडी पाई गई थी। ऐसे में हम यह नहीं कह सकते कि जब तक बच्चों के लिए वैक्सीन नहीं आए, स्कूल न खोला जाए।
सख्त कोविड नियमों के तहत हम स्कूलों को खोल सकते हैं। यदि स्कूल प्रशासन प्रार्थना, लंच व अन्य जगहों पर भीड़ न जुटने दे तो इससे काफी राहत मिलेगी। इसके अलावा शिक्षकों एवं स्कूल के सभी कर्मचारियों को कोरोना का टीका लगवा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ अभिभावक अभी डर रहे हैं। शुरुआत में कुछ समय स्कूलों में बच्चे कम संख्या में आएंगे, लेकिन धीरे-धीरे अभिभावकों में विश्वास आएगा।
उन्होंने कहा कि सभी बच्चों का टीकाकरण कराने में काफी समय लगेगा और ऐसे में तो अगले साल के बाद तक ही स्कूल खोले जा सकेंगे। इसके बाद वायरस के नए प्रारूप का खतरा भी रहेगा। ऐसी चिंताओं के बीच तो हम स्कूल खोल ही नहीं पाएंगे। कई शहरों में स्कूल खोले जा सकते हैं, लेकिन कई शहरों में नहीं खोले जा सकते हैं।
शिफ्ट में चले स्कूल, क्षमता रहे आधी
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि जिन जिलों में कोरोना के संक्रमण कम हो गए हैं तथा जहां कम संक्रमण दर है, वहां कड़ी निगरानी एवं कोविड प्रोटोकॉल के साथ स्कूलों को खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए। स्कूलों को 50 फीसदी उपस्थिति के साथ या अलग-अलग शिफ्ट में शुरू किया जा सकता है। स्कूलों में छात्रों को हैंड सेनिटाइजर समेत कोरोना से बचाव के लिए अन्य चीजें देनी चाहिए। स्कूल खोलने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें स्थायी रूप से खोल रहे हैं, इसमें जोखिम और फायदे की स्थिति का विश्लेषण किया जाए।
कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं बच्चे
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर में बच्चे संक्रमित हो सकते हैं। इसका आधार माना जा रहा है कि भारत, यूरोप और ब्रिटेन में दूसरी लहर के दौरान बहुत कम बच्चे इस वायरस से प्रभावित हुए थे और उनमें गंभीर रूप से बीमार होने के मामले बहुत कम थे। भारत में भी कोरोना वायरस से कम बच्चे संक्रमित हो रहे हैं।
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