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- Paralympics Gold Medelist Krishna Wanted To Become A Cricketer, Left Cricket Due To Short Height, Took The Racket On The Advice Of His Father; World Champion In 3 Years
जयपुर16 मिनट पहलेलेखक: स्मित पालीवाल
टोक्यो पैरालिंपिक में जयपुर के बैडमिंटन खिलाड़ी कृष्णा नागर ने गोल्ड मेडल जीता है। कृष्णा की जीत के बाद जयपुर के प्रतापनगर में उनके घर में खुशी का माहौल है। आम से खास सभी कृष्णा के घर पहुंच रहे हैं और परिजनों को बधाई दे रहे हैं। वहीं कृष्णा के जयपुर आने का इंतजार कर रहे हैं। ताकि गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा का स्वागत सत्कार कर सके।

कृष्णा से फोन पर बात करते परिजन।
कृष्णा का जयपुर से लेकर टोक्यो तक का सफर इतना आसान नहीं था। महज 2 साल की उम्र में कृष्णा के परिजनों को उनकी लाइलाज बीमारी का पता चला। इसके बाद कृष्णा की उम्र तो बढ़ रही थी, लेकिन लंबाई नहीं बढ़ रही थी। कृष्णा भी निराश होने लगे। परिजनों ने कृष्णा का हर पल पर साथ दिया और उन्हें मोटिवेट किया। उसका ही नतीजा है कि कृष्णा बैडमिंटन शॉर्ट हाइट कैटेगरी में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी बने हैं।

एक दूसरे को मिठाई खिलाकर कृष्णा की जीत की बधाई देते परिजन।
कृष्णा ने लोगों के ताने सुनकर घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था
कृष्णा के पिता सुनील नागर ने बताया कि गोल्ड मेडल जीतने से पहले कृष्णा ने कड़ी मेहनत की है। उसने बैडमिंटन के लिए घर-परिवार, यारी-दोस्ती सबकुछ छोड़ दिया और लगातार मेहनत करता रहा। उसी का नतीजा है कि आज उसने यह मुकाम हासिल किया है। उन्होंने बताया कि यह सफर इतना आसान नहीं था। लंबाई कम होने की वजह से लोग कृष्णा को ताने देने लगे थे। उसने घर से बाहर निकलना भी बंद कर दिया था, लेकिन परिवार के सदस्यों ने उसे कभी कमतर महसूस नहीं होने दिया। लगातार खेलने के लिए मोटिवेट करते रहे। ताकि वह खुद को सब बच्चों की तरह ही समझ सके।

बचपन से क्रिकेटर बनना चाहता था कृष्णा।
क्रिकेटर बनना चाहता था कृष्णा
कृष्णा के पिता सुनील नागर ने बताया कि कुछ सालों पहले तक कृष्णा क्रिकेटर बनना चाहता था। लंबाई कम होने की वजह से बैटिंग के दौरान हर बॉल बाउंस होकर कृष्णा के सिर के ऊपर से निकल जाती थी। इसके बाद उसने क्रिकेट छोड़ वॉलीबॉल खेलना शुरू किया। इसमें कृष्णा काफी अच्छा डिफेंडर बन गया, लेकिन लंबाई की वजह से उसने वॉलीबॉल भी छोड़ दिया। फिर मैंने उसे बैडमिंटन खेलने की सलाह दी और सवाई मानसिंह स्टेडियम लेकर गया। जहां साल 2017 से उसने बैडमिंटन खेलना स्टार्ट किया।

कृष्णा के घर पर लगी अवॉर्ड की कतार।
दोस्त बन पिता ने की कृष्णा की मदद
कृष्णा के पिता हर दिन सुबह कृष्णा को मोटरसाइकिल से 13 किलोमीटर दूर स्टेडियम छोड़ते थे। जहां वह दिनभर प्रैक्टिस करता और शाम होने के बाद बस में बैठ घर आता था। इस दौरान कृष्णा हर दिन अपने खेल में सुधार लाता गया और कई प्रतियोगिताओं में मेडल भी जीते। इसके बाद राजस्थान सरकार ने उसे नौकरी से भी नवाजा। अब पैरालिंपिक में कृष्णा ने गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम दुनिया में रोशन कर दिया है।

गोल्ड मेडल जीतने के बाद कृष्णा के घर पर जश्न का माहौल।
भाई के आने के बाद मनाऊंगी राखी
कृष्णा कि बहन ने बताया कि पैरालिंपिक की तैयारियों के कारण भाई पिछले 6 महीने से जयपुर से बाहर था। इस वजह से राखी पर कृष्णा को राखी भी नहीं बांध पाई थी, लेकिन अब भाई ने मेडल जीत लिया है। जिस दिन भाई घर आएंगे, उसी दिन राखी का त्योहार मनाऊंगी।

गोल्ड मेडल जीतने के बाद कृष्णा नागर।
परिवार की पहचान बना कृष्णा
कृष्णा के चाचा अनिल ने बताया कि उनके भतीजे की सालों की मेहनत का नतीजा अब दुनिया के सामने आ गया है। अब तक जहां लोग कृष्णा को हमारी वजह से जानते थे। वहीं अब पूरे परिवार की पहचान कृष्णा के नाम से होने लगी है। हम सबके लिए गर्व की बात है। मुझे बस अब इंतजार है, अपने भतीजे का। जिस दिन वह जयपुर लौटेगा, उसका ऐसा स्वागत करूंगा कि सब देखते रह जाएंगे।
जयपुर के कृष्णा ने रचा इतिहास
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