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वाराणसी35 मिनट पहले
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काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष ने कहा मिहिर भोज ने म्लेच्छों का वध करने पर ली थी आदिवाराह की उपाधि।
ग्वालियर में प्रतिहार वंश के शासक मिहिर भोज की प्रतिमा पर गुर्जर जाति के सामने आने के बाद देश भर में बहस छिड़ गई है कि वह क्षत्रिय थे न कि गुर्जर…। वहीं, 22 सितंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गाजियाबाद के दादरी में मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। प्रतिमा के शिलापट्ट पर गुर्जर लिखा गया है। इसे लेकर राजपूत समाज के लोगों ने गलत तथ्य बताकर आंदोलन की चेतावनी दे डाली है।
उधर, वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के इतिहासकार और प्राचीन इतिहास व पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर ओंकार नाथ सिंह का मानना है कि राजा मिहिर भोज राजपूत शासक थे। मिहिर भोज म्लेच्छों का सर्वनाश कर भारत से निकालने वाले प्रतिहार वंश के परम प्रतापी शासक थे। गुप्तोत्तर काल के मिले सिक्कों और ग्वालियर में अभिलेखों के आधार पर यही सिद्ध होता है कि उनके आगे गुर्जर जाति नहीं बल्कि स्थान का प्रभाव था। गुजरात वाले क्षेत्र में रहने वालों को गुर्जर कहा जाता था। इसलिए उन्हें गुर्जर नाम दिया गया, जबकि ऐतिहासिक साक्ष्य कुछ और ही कहते हैं।

मिहिर भोज के शूकर मुख आकृति वाले सिक्के।
ह्वेनसांग ने भी राजपूत बताया है
गुजराती लेखक और स्वतंत्रता आंदोलन के नेता केएम मुंशी के विभिन्न उदाहरण के अनुसार गुर्जर शब्द जातिवाचक नहीं स्थान वाचक है। इस शब्द का उल्लेख 5-6वीं शताब्दी से मिलता है। हर्षवर्धन कालीन विख्यात चीनी यात्री ह्वेनसांग ने गुर्जर नरेश नागभट्ट और मिहिर भोज को राजपूत बताया है। इतिहासकारों का यही मत है कि गुर्जरों शासकों की उत्पत्ति खजर जाति से या विदेशी नहीं थे।

प्रतिहार कालीन सिक्के।
गुर्जर और गुजरातियों का निवास स्थान एक है
यदि गुर्जर जाति विदेशों से आकर राजपूतों में सम्मिलित हो जाती तो भी विज्ञान और इतिहास के आधार पर उसका पुराना अस्तित्व आज मिलता।

प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे।
जीन विज्ञानियों के अध्ययन में भी यह बात सामने आ चुकी है कि गुर्जर उत्तर भारत के ही राजपूत थे। प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार गुर्जर और गुजराती लोगों में काफी समानता थी। उत्तर भारत में दोनों का एक ही स्थान बताया गया है। वहीं इनका शासन काल पाकिस्तान तक था, इसलिए बड़ी संख्या में वहां भी गुर्जर निवास करते थे। दोनों का स्थान अलग था, मगर जाति अलग-अलग।

डीएनए सैंपल के आधार पर गुर्जर और गुजरातियों का निवास स्थान एक ही जगह पर था।
भगवान आदिवाराह की उपाधि धारण किया था मिहिर भोज ने
प्रोफेसर ओंकार नाथ सिंह के अनुसार मिहिर भोज (840-890 ई.) ने स्वयं को आदिवाराह की उपाधि दी थी। जिस प्रकार भगवान विष्णु के अवतार ने राक्षस हिरण्याक्ष का वध कर धरती को पाताल लोक से निकालकर वापस स्थापित किया था। ठीक वैसे ही मिहिर भोज ने अरबी, हूणों, शक और अन्य पश्चिमी आक्रमणकारियों (म्लेच्छों) को भारत से खदेड़ कर मध्य एशिया से ही बाहर कर दिया था।

राजा मिहिर भोज और प्रतिहार वंश के शासकों पर प्रो. ओएन सिंह द्वारा लिखी पुस्तक।
प्रो. सिंह ने कहा कि मिहिर भोज के इस वाराह अवतार का उल्लेख सिक्कों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसमें भी राजा का शुकर मुख बना हुआ है।
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