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चंडीगढ़40 मिनट पहले
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सेक्टर-17 प्लाजा में 20 मिनट्स ऑफ
चंडीगढ़ के नागरिक, टीचर्स और युवा शहर में पढ़ने वाले अफगान स्डूटेंट्स के साथ सेक्टर-17 प्लाजा में एक अनोखे ‘स्टैंड विद कैंडल्स फॉर 20 मिनट्स ऑफ साइलेंस’ विरोध में शामिल हुए। जो कि तालिबान द्वारा हाल ही में अफगानिस्तान में लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने के विरोध में किया गया। इसकी तुलना अफगानिस्तान में 20 साल के उदार और लोकतांत्रिक शासन (2001-2021) से की गई। जिसमें महिलाओं ने अकादमिक, संगीत, खेल या रक्षा सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इसका आयोजन अफगान स्टूडेंट्स यूनिटी ग्रुप और शहर की स्वयंसेवी संस्था युवसत्ता ने मिलकर किया।

सेक्टर-17 प्लाजा में 20 मिनट्स ऑफ साइलेंस’ विरोध में शामिल छात्र
इस विरोध में शामिल सभी लोग 20 मिनट तक अपने हाथों में मोमबत्तियां लेकर खड़े हुए। अफगानिस्तान में लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देने के लिए मिले इस समर्थन के प्रति सभी अफगानी छात्रों ने आभार व्यक्त किया। अफगान स्टूडेंट्स यूनिटी ग्रुप इन चंडीगढ़ एंड पंजाब के अब्दुल मोनिर कक्कड़ और वालिद अचाकजाई ने कहा कि अफगानिस्तान में महिलाओं पर तालिबान की स्थिति पर स्पष्टता की कमी ने पूरे देश में “अविश्वसनीय भय” पैदा कर दिया है। हर रोज महिलाओं के अधिकारों पर अंकुश लगाने की खबरें आती रहती हैं। एक अन्य अफगान छात्रा खातिरा नूरी ने कहा कि कुछ महिलाओं को बिना पुरुष रिश्तेदार के घर से निकलने से रोका जा रहा था, कुछ प्रांतों में महिलाओं को काम बंद करने के लिए मजबूर किया गया। हिंसा से भाग रही महिलाओं के प्रोटेक्शन सेंटर्स को निशाना बनाया गया था।

सेक्टर-17 प्लाजा में 20 मिनट्स ऑफ साइलेंस’ विरोध में बोलते हुए
हाल की घटनाओं से आहत नीलोफ़र और लिडा ने कहा कि पिछले तालिबान के शासन के दौरान महिलाओं के अधिकारों पर गंभीर प्रतिबंध थे। ऐसे में महिलाएं और लड़कियां काफी डरी हुई हैं। अपनी चिंताओं को साझा करते हुए जकारिया हुसैन और परवाना ने कहा कि उनके सपना एक ऐसे अफगानिस्तान का है जहां सभी जातीय, धार्मिक पृष्ठभूमि या लिंग के लोग अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास करने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता और समर्थन का आनंद ले सके। इस प्रसाय का सारांश प्रस्तुत करते हुए शहर की स्वयं सेवी संस्था युवसत्ता के संयोजक प्रमोद शर्मा ने कहा कि वे इस प्रयास में शामिल हुए हैं, क्योंकि यह अफगान महिलाओं के लिए भय और आशा दोनों का क्षण है और दुनिया के लिए अपनी कड़ी मेहनत से जीते गए अधिकारों का समर्थन करने और लैंगिक समानता का वातावरण सुनिश्चित करने का एक जरूरी समय है, जिसका अर्थ है कि महिलाओं और पुरुषों तथा लड़कियों और लड़कों को समान अधिकार, संसाधन, अवसर और सुरक्षा हासिल हों।
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