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- Uttarakhand Political Crisis Analysis | Uttarakhand New Chief Minister Announced, Tirath Singh Rawat, Dhan Singh Rawat, Trivendra Singh Rawat, Raman Singh, PM Modi, HM Amit Shah, JP Nadda
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त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की खुशी में गंगोत्री में पुरोहितों ने आतिशबाजी की थी। रावत ने मंगलवार को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा था।
उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत एक सादगी पसंद और तड़क-भड़क से दूर रहने वाले नेता हैं। संघ की पृष्ठभूमि वाले रावत ने संगठन के साथ ही भाजपा के कई महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ विधायकों के विरोध के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत की पसंद माने जा रहे धन सिंह रावत सीएम पद की दौड़ से बाहर हो गए।
इसकी सबसे बड़ी वजह वरिष्ठ विधायकों की असहमति रही। नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए विरासत में मिली नाराजगी को खत्म करते हुए गुड गवर्नेंस के साथ सरकार का ‘शुद्धिकरण’ करना चुनौतियों से भरा हुआ है।
एक अपेक्षाकृत जूनियर विधायक को मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ थे। इसके अलावा त्रिवेंद्र का खास होने के कारण यह माना जा रहा था कि वे कहीं न कहीं उनके प्रभाव में काम करेंगे और चुनाव से पहले भाजपा को जिस बदलाव की जरूरत है वह नजर नहीं आएगा।
तीरथ सिंह रावत ही क्यों ?
विधायकों के विरोध के बाद जब किसी सर्वमान्य और संघ के मानकों पर खरे उतरने वाले नेता की तलाश शुरू हुई तो केवल तीरथ सिंह रावत का ही नाम ऐसा था, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं थी। दो बार उत्तराखंड भाजपा के अध्यक्ष रह चुके तीरथ सिंह रावत का कार्यकाल हमेशा ही निर्विवाद रहा। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह रही कि हमेशा विवादों से दूर रहे और भाजपा के सभी गुटों को साथ लेकर चले।
मुख्यमंत्री बनने के बाद बाद उनके सामने शासन-प्रशासन और संगठन को त्रिवेंद्र सिंह रावत की छाया से मुक्त करने के साथ ही अधिकारों का विकेंद्रीकरण करने की भी चुनौती होगी। अगला विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, इसलिए अगले एक साल में उन्हें उस नकारात्मकता को खत्म करना होगा, जो त्रिवेंद्र सरकार की कार्यप्रणाली की वजह से भाजपा के प्रति उत्पन्न हुई है।
चुनौतियों का पहाड़
देखा जाए तो उनके सामने गंभीर चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। क्या वह अगले साल चुनाव से पहले भाजपा के प्रति उपजी नाराजगी को दूर करने में सफल होंगे? इसके लिए उन्हें अपनी ही पार्टी की सरकार के कई फैसलों को वापस लेना पड़ सकता है। क्या भाजपा इस पर तैयार होगी। तीरथ सिंह रावत के सामने 5 सबसे बड़ी चुनौतियां-
1. अपनी ही सरकार के फैसलों को बदलना
कुछ फैसले तो इतने पुराने हो चुके हैं कि नई सरकार के लिए कदम वापस खींचना आसान नहीं होगा। उदाहरण के लिए देवस्थानम बोर्ड के गठन का फैसला ऐसा है, जिसे लेकर भारी गुस्सा है। मंगलवार को रावत के इस्तीफे के बाद जिस तरह से गंगोत्री के तीर्थ पुरोहितों ने आतिशबाजी करके खुशी मनाई, उससे स्पष्ट है कि एक वर्ग में रावत सरकार के प्रति कितना गुस्सा है। गैरसैंण को मंडल बनाने का निर्णय भी कुछ ऐसा ही है। इस पर पूरे कुमाउं में उबाल है।
2. कांग्रेस से आए विधायकों को मैनेज करना
नए मुख्यमंत्री के सामने सिर्फ त्रिवेंद्र के फैसले ही चुनौती खड़ी नहीं करेंगे, बल्कि वे सभी वजहें, जिनके कारण कांग्रेस की हरीश रावत सरकार हारी आज भी वैसी की वैसी हैं। इनमें सबसे बड़ी वजह सरकार में हर स्तर पर फैला भ्रष्टाचार है। आम लोगों को छोटे से छोटे काम के लिए परेशान किया जाता है। सरकार के स्तर पर कभी इसे रोकने की कोशिश ही नहीं की गई।
ऐसा नहीं है कि यह भ्रष्टाचार त्रिवेंद्र सरकार में पनपा, यह तो भाजपा व कांग्रेस की सरकारें बारी-बारी एक-दूसरे को विरासत में देती रही हैं। अगर तीरथ सिंह रावत इस पर प्रभावी और लोगों को राहत देने वाली चोट कर सके तो यह उनकी बड़ी उपलब्धि हो सकती है।
3. विकास कार्य तेज करना
पूरे राज्य में चल रहे विकास कार्यों की धीमी गति भी भाजपा को भारी पड़ सकती है। चारधाम यात्रा प्रोजेक्ट से लेकर सीवर, पेयजल की तमाम योजनाएं जिस गति से चल रही हैं, उससे आम लोगों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। इन्हें तेज करना भी उनके लिए चुनौती होगा।
4. पूर्व मुख्यमंत्री के समर्थकों को संतुष्ट रखना
राजनीतिक स्तर पर त्रिवेंद्र के समर्थकों को साधना भी नए मुख्यमंत्री के लिए चुनौती होगा। कांग्रेस से भाजपा में आए कुछ नेता तो त्रिवेंद्र के लिए भी परेशानी की वजह बने रहे, वे उन्हें चैन से रहने देंगे, ऐसा लगता नहीं है। त्रिवेंद्र सरकार के समय जिस तरह से सरकारी प्रचार तंत्र ने काम किया, उससे भी नए मुख्यमंत्री को बचना होगा।
त्रिवेंद्र को खुश करने के लिए जिस तरह की मीडिया व विज्ञापन नीति उनके चाटुकारों ने अपनाई उससे लोगों में सही संदेश नहीं गया। इसलिए नए मुख्यमंत्री को अति व्यक्ति प्रचार से भी बचना होगा व आलोचना को सकारात्मक रूप से लेना होगा।
5. अफसरशाही पर लगाम कसना
त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार में जिस तरह से अफसर पूरी सरकार पर हावी हो गए थे, उस कॉकस को तोड़ना भी तीरथ के लिए चुनौती होगा। त्रिवेंद्र की शह से कई अफसर तो इतने बेखौफ हो गए थे कि वे मंत्रियों की बैठकों में तक नहीं जाते थे। कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक तो इस पर खुलकर नाराजगी भी जता चुके थे।
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