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माउंटआबू. मंदिर के इस कुंड में भगवान शिव के अंगूठे के प्रतिरूप की होती है पूजा।
- मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे के कारण ही माउंट के पहाड़ टिके हुए हैं
माउंट आबू से करीब 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर किले के पास स्थित है अचलेश्वर महादेव मंदिर। देश में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा हाेती है, जबकि दुनियाभर के शिवालयाें में शिवलिंग की पूजा हाेती है। मान्यता है कि इस मंदिर में स्थित भगवान शिव के अंगूठे के कारण ही माउंट के पहाड़ टिके हुए हैं और यहां भोलेनाथ अंगूठे में वास करते हैं।
इतना ही नहीं, इसी अंगूठे के नीचे एक शिवलिंग भी है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग दिन में 3 बार रंग बदलता है। यह शिवलिंग देखने में तो बिल्कुल सामान्य की तरह है, लेकिन इसके बदलते हुए रंग सभी को हैरान कर देते हैं। शिवलिंग का रंग सुबह के समय लाल होता है। दोपहर के समय इसका केसरिया में बदल जाता है और रात होते-होते ये श्याम रंग का हो जाता है।
अर्बुद पर्वत को किया स्थिर, इसलिए कहलाया अचलगढ़

मंदिर के पुजारी पन्नालाल ने बताया कि मान्यता है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हो गई, क्योंकि इसी पर्वत पर भगवान शिव की प्यारी नंदी भी थी। लिहाजा पर्वत के साथ नंदी को भी बचाना था। भगवान शंकर ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। नंदी बच गई और अर्बुद पर्वत भी स्थिर हो गया। भगवान शिव के अंगूठे के निशान यहां आज भी देखे जा सकते हैं।
मान्यता के अनुसार पौराणिक काल में जहां आज आबू पर्वत स्थित है, वहां नीचे विराट ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी गाय कामधेनु ब्रह्म खाई में गिर गई, तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा का आह्वान किया। इस पर ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई। इसके बाद कई बार ऐसा ही हाेता रहा ताे वशिष्ठ मुनि ने हिमालय से ब्रह्म खाई पाटने का अनुरोध किया। हिमालय ने अपने पुत्र नंदी वर्धन को भेजा।
उन्हें अर्बुद नाग उड़ाकर वशिष्ठ आश्रम लाया। इसके बाद नंदी वर्धन ब्रह्म खाई में उतरे ताे धंसते ही चले गए, केवरल उनका नाम व उसे ऊपरी हिस्सा ही बाहर रहा, जाे आज आबू पर्वत है। नंदी वर्धन चलने की स्थिति में नहीं रहे ताे वशिष्ठ के अनुराेध पर महादेव ने दाहिने पैर के अंगूठे से उन्हें स्थिर यानी अचल कर दिया। इसके बाद से इस जगह का नाम अचलगढ़ हाे गया। इसी तरह अर्बुद नाग और नंदी वर्धन आबू पर्वत नामकरण हुआ।
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