- Hindi News
- National
- Farmer’s Protest On Women’s Day At Delhi Borders | Message From Henna On International Women’s Day, ‘Take Back Black Law’
Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें Smart Newsline ऐप
दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर महिला किसानों ने हाथों में मेहंदी लगाकर सरकार से कृषि कानून वापस लेने की मांग की।
गाजीपुर बार्डर पर कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को 100 दिन से ज्यादा हो गए हैं। इस आंदोलन में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गुजरात, और उत्तराखंड से आई औरतें शामिल हैं। सोमवार को महिला दिवस पर उन्होंने हाथों पर मेहंदी रचाकर इंकलाब का नारा बुलंद किया।

कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को 100 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। प्रदर्शन में महिलाओं की भी सशक्त भागीदारी रही है।
भूख हड़ताल का हिस्सा बनीं और मूल रूप से उत्तराखंड के ऊधम नगर की रनविता लॉ स्टूडेंट हैं। वे कहती हैं, ‘मैं भी एक किसान परिवार से हूं, मैं तो कहती हूं कि भारत जैसे देश में हर कोई किसान परिवार से ही है। खेती मर्द और औरतें दोनों मिलकर करते हैं। इसलिए जब आंदोलन की बात आई तो औरतों ने भी हिस्सेदारी निभाने का मन बनाया।’ मंच की कमान रनविता ने ही संभाली।

महिला दिवस पर किसान आंदोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी महिलाओं ने ही संभाली।
‘मेहंदी लगाने वाले हाथ इंकलाबी भी हो सकते हैं’
रनविता कहती हैं कि हमने आज का आंदोलन उन औरतों के नाम किया है, जो घरों से पहली बार निकलीं। उनसे पूछने पर की मेंहदी से हथेलियों में इंकलाबी स्लोगन लिखने का आइडिया कहां से आया। इसके जवाब में रनविता ने कहा कि आपने अक्सर सुना होगा कि औरतों को ताना दिया जाता है कि क्या हाथों में मेंहदी लगा रखी है, जो इतना धीरे काम कर रही हो। औरतों के शृंगार को ही कमजोर होने का प्रतीक माना जाता है, लेकिन हम यह कहना चाहते हैं कि मेंहदी लगाने वाले हाथ इंकलाबी भी हो सकते हैं। वे आंदोलन का हिस्सा भी हो सकते हैं।’

गाजीपुर बॉर्डर पर जगह-जगह सरकार को चेतावनी देने वाले पोस्टर लगे हैं।
‘सड़क पर आ गए तो संसद नहीं चलने देंगे’
पानीपत से आईं कौशल्या कविता के अंदाज में अपनी बात कहती हैं। वे कहती हैं – ‘आम नहीं यह इंकलाब की मेंहदी है, इसके जरिए हमने मन की बात कह दी है।’ पंजाब से आई हरसमन कौर ने बताया कि खेती का बारीक काम मर्द नहीं औरतें ही करती हैं। हंसिया से कटाई करनी हो, बीज डालने हों, धान की रोपाई करनी हो, अनाज को सलीके से पूरे साल के लिए रखना हो या फिर बीज को अगले साल की खेती के लिए बचाना हो, यह सारे काम औरतें ही करती हैं। इसलिए अगर किसानों की बात सरकार ने नहीं मानी तो एक दिन नहीं फिर ‘सारे दिन’ आंदोलन की कमान हम संभालेंगे और अगर हम सड़क पर आ गए तो संसद नहीं चलने देंगे।

कृषि कानूनों का विरोध करने गाजीपुर बार्डर पर महिला दिवस पर इकट्ठा हुईं किसान, इस दौरान मुजफ्फरनगर की रनविता ने मंच की कमान संभाली।
‘किसान को घर से भी प्यारा उसका खेत होता है’
गुजरात से आई मंजू बेनपाल कहती हैं कि यहां लोग हमसे यह भी पूछते हैं कि क्या खेती आपके नाम है। कुछ औरतों के नाम है और कुछ के नहीं। एक खेत पूरे परिवार का होता है। लिखत-पढ़त में खेती किसके नाम है किसके नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता। हम जानते हैं ऐसे सवाल करके आंदोलन से औरतों को अलग करने की साजिश भी चल रही है। पर सुन ले यह सरकार अब बात सीधे हमारे खेतों तक आ पहुंची है। किसान को घर से भी प्यारा उसका खेत होता है।’ उससे पूछने पर कि आखिर वह कृषि कानूनों के बारे में क्या जानती हैं, वे कहती हैं- ‘हमारे खेत कंपनियों द्वारा हथियाने की साजिश चल रही है।फसलों को सस्ते से सस्ते दाम में खरीदने की तैयारी चल रही है।’

कृषि कानूनों के खिलाफ महिलाओं ने रचाई इंकलाबी मेहंदी।
Follow @ Facebook
Follow @ Twitter
Follow @ Telegram
Updates on Whatsapp – Coming Soon