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ब्रिटेन (UK) की संसद में सोमवार को एक बार फिर भारत में चल रहे किसान आंदोलन का मुद्दा गूंजा। UK ने दोहराया कि कृषि सुधार कानून भारत का घरेलू मामला है और लोकतंत्र में सुरक्षा बलों को कानून-व्यवस्था लागू करने का अधिकार है। दरअसल, ब्रिटिश संसद के वेस्टमिंस्टर हाल में हुई इस चर्चा में 18 ब्रिटिश सांसदों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 17 ने आंदोलन का समर्थन किया। लेबर पार्टी ने इस चर्चा की मांग की थी।
विदेशी संसद में हुई चर्चा पर भारत ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है। ब्रिटेन में भारत के उच्चायोग ने कहा है कि चर्चा के दौरान सांसदों ने झूठ तथ्य पेश किए। हमें इस बात का अफसोस है कि चर्चा के दौरान संतुलित बहस के बजाय झूठे दावों और बिना किसी तथ्यों के आधार पर चर्चा की गई। उन्होंने कहा कि विदेशी मीडिया (जिसमें ब्रिटिश मीडिया भी शामिल है) भारत में मौजूद है और सभी ने आंदोलन के हल के लिए की गई बातचीत को देखा है। भारत में मीडिया की स्वतंत्रता की कमी का सवाल ही नहीं उठता।
ब्रिटिश मंत्री बोले- शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार लोकतंत्र में अहम
UK में मिनिस्टर ऑफ स्टेट फॉर एशिया निगेल एडम्स ने कहा कि कृषि नीति भारत सरकार के लिए एक आंतरिक मसला है। हमारी सरकार का दृढ़ता से मानना है कि बोलने की आजादी और शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार किसी भी लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि हम यह भी स्वीकार करते हैं कि यदि कोई विरोध-प्रदर्शन अपनी लिमिट क्रॉस करता है, तो लोकतंत्र में सुरक्षा बलों को कानून-व्यवस्था लागू कराने का अधिकार है। एडम्स ने पार्लियामेंट कॉम्प्लेक्स में ‘भारत में शांतिपूर्ण विरोध और प्रेस की आजादी’ के मुद्दे पर एक बहस के दौरान यह बयान दिया।
बातचीत के जरिए हल निकलने की उम्मीद
उन्होंने कहा कि भारत में हमारे हाईकमीशन नेटवर्क के अधिकारी मामले पर नजर बनाए हुए हैं और कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन पर हमें लगातार फीडबैक दे रहे हैं। हमें पता है कि भारत सरकार मामले को हल करने के लिए कई बार किसानों से बात भी की है, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही मामले का हल बातचीत के जरिए ही निकाल लिया जाएगा।
ब्रिटेन की संसद में चर्चा हुई
ब्रिटेन की संसद में यह चर्चा एक पिटीशन के बाद हुई। इसमें ब्रिटिश सरकार से अपील की गई है कि वो भारत सरकार पर आंदोलन कर रहे किसानों की सुरक्षा और प्रेस फ्रीडम को सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाए। पिटीशन नवंबर महीने में शुरू हुई थी, जिस पर करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोगों ने साइन किए थे।
किसान आंदोलन को लेबर पार्टी का समर्थन
कोविड प्रोटोकॉल के चलते कुछ सांसदों ने घर से ही डिजिटल माध्यम से इसमें हिस्सा लिया। कुछ सांसद पार्लियामेंट में मौजूद रहे। किसान आंदोलन को सबसे अधिक लेबर पार्टी का समर्थन मिला। लेबर पार्टी के 12 सांसदों जिसमें लेबर पार्टी के पूर्व नेता जेरेमी कोर्बीन भी शामिल थे। कोर्बीन ने इससे पहले भी किसानों का समर्थन किया था।
विदेशी संसद में चर्चा नहीं हो सकती : विलियर्स
इसी दौरान कंजर्वेटिव पार्टी की थेरेसा विलियर्स ने भारत सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि कृषि भारत का अपना आंतरिक मामला है, इसके ऊपर विदेशी संसद में चर्चा नहीं की जा सकती।
भारत में 100 दिन से ज्यादा से जारी आंदोलन
भारत की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर किसान पिछले 100 से ज्यादा दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि 3 नए कृषि सुधार कानूनों को पूरी तरह वापस लिया जाए। सरकार ने कानूनों में संशोधन की बात कही थी, लेकिन किसान इसके लिए तैयार नहीं हैं।
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